क्या कहते हो बात पुरानी । तुम नहीं जानी हम नहीं जानी !

क्या कहते हो बात पुरानी ।
तुम नहीं जानी हम नहीं जानी ! ।।टेक।।
रावण को दस सीर बनाये ।
उसने तो  कैलास  उठाये  ।।
वो तो बडे तपी कहलाये -
फेर किया क्यों यह बैमानी ?  ।। १ ।।
कुंभकर्ण जबके सोया था  ।
नाक में उसके गधा गया था ।
जब समुन्दर में स्नान किया था।।
कम्मर तकही था सब पानी ! ।।२ ।।
शुर्पणखा इतनी खंबी थी।
सोला योजन से लंबी थी।।
उसकी कुटीया भी कितनी थी।
वारे यह अचरज की बानी !  ।।३ ॥
इसका सत्य पछाने कोई -।
तो  बोलेगा  बातें सबाई ।।
हमी सरीखे थे वह भाई ।
क्यों पूजो उनको मनमानी ? ।।४।।
इससे सिध्द॒ यही होता है ।
भक्त कभी राक्षस बनता है ।।
जब वो सावध नहीं रहता है ।
तुकड्या कहे,रखो याद कहानी ! ।।५।।