कलीने सबका मत मारा, पुराना शास्त्र पंथ हारा


भजन ३१
(तर्ज : जमका अजब तडाका बे... )

कलीने सबका मत मारा, पुराना शास्त्र पंथ हारा ।।टेक।।

नीति धर्मको मानत झूठा, एक किया सारा।
जीव-जंतु को कौन खिलावे, नहि डाले चारा
।।१।।
एक कहे सब पुराण झूठे, दूजा मत न्यारा।
एक कहे सब वही भरा हैं, देखत परनारा
।।२।।
द्वार भिखारी आया उसको बातनसे मारा।
रोटि न उसको देत, मरे वह देखे मत प्यारा
।।३।।
कहता तुकड्या नरक न चूके,जबतक दुहि धारा।
जानत होके एकहि बोले, जमके मुख जोरा
।।४।।