छोड़ अब नंगोंका फंदा, असत्‌ के मत लागे छंदा

भजन ३३
(तर्ज : जमका अजब तडाका बे... )

छोड़ अब नंगोंका फंदा, असत्‌ के मत लागे छंदा ।।टेक।।

काम क्रोध में क्यों लपटा है, होय रहा अंधा।
कोई दिन जम सिर मारत जूते, नरक कुंड बंधा ।।१।।

माड़ी हवेली कहाँतक देखे, जबतक तन खंदा।
कोइ दिन तनसे राम उचाटा, चला उखड धंदा ।।२।।

झूठ पसारा छोड़ो यारो, भज सतके कंदा।
बध्द जीवका मेल निकारो, खूब बना मंदा ।।३।।

कहता तुकड्या अनित्य बिसरो, नित्य धरो रंदा।
पापपूनकी किलच निकारो, मत गमवो संधा ।।४।।