जगको दिलसे झुकवा दे, हरिके गुण में भुकवा दे ।।टेक।।

भजन ३५
(तर्ज : जमका अजब तड़ाका बे... )

जगको दिलसे झुकवा दे, हरिके गुण में भुकवा दे ।।टेक।।

क्या करना है मठ मढ़िया का, ले मत ढकला दे।
हरख शोक दो बांधों घरमें, मनसे झुकवा दे ।।१।।

लाथ मार अब मर्म-शर्मको, गर्व भी हकला दे।
चंचल मनकों स्थीर कराकर, वहाँपे रुकबवा दे ।।२।।

ईश्वर के गुण गावन लागे, ऐसीही कला दे।
काम क्रोध को खैच खैचकर, हरदम छकवा दे ।।३।।

कहता तुकड्या नित्य सत्यको, धरने सिखला दे।
सत्य पंथ वह लेकर भाई, असार थुकवा दे ।।४।।