समुदाय प्रार्थना ये, गुरुदेवजी सुनीजा ।

तर्ज : जैसा किया है तूने, बैसा तुझे...)

समुदाय प्रार्थना ये, गुरुदेवजी सुनीजा ।
मतलब जो था हमारा, दिल तुमपे जाये खींचा ।।टेक ।।
चारों दिशा हैं मन्दर, मैदान है गलीचा ।
अस्मान छत दिया है, कोऊ न ऊँच - नीचा ।।१॥
तारे और चंद्र-सूरज जलती निरंजनी है ।
पूजा हे सदगुरुकी, मानव बने बगीचा ।।२॥।
सब संप्रदा हैं इसके, फूलो के रंग न्यारे ।
मिलकर बना नगर है, सच प्रेम से ही सींचा ।।३॥।
यह धर्म-वर्म सब हैं, कमरे विचारियोंके ! 
तुकड्या कहे,सभी का, है एकही नतीजा ! ।।४॥।