जाने दिलको ही क्या हो गया । ऐसी गफलत में मैने तो आना न था

(तर्ज : चाँद जाने कहाँ खोगया:..) 

जाने दिलको ही क्या हो गया ।
ऐसी गफलत में मैने तो आना न था  ।। टेक ।।
शाम होने लगी, दिन समाने लगा ।
प्रार्थना का समय ठीक आने लगा ।।
मेरा तिरछा कदम क्यों गया ?
मैने ये वख्त ऐसा बहाना न था ।। १ ।।
मित्र चाहे कहें, घुमने को चलो ।
वो क्या जाने कि तुम हाथ ही को मलो ।।
मोतिया बिन्द ऑखो गया |
किसकी संगत से रंगत गमाना न था ।।२।।
अब तो उठो, चलो-प्रार्थना में चले ।
चाहे देरी भयी तो भी होगे भले ।।
लाभ जितना भी हो, पागया ।
कहता तुकड्या ये गलती तो होना न था ।।३।।