हे दीनदयाघन! करुणासागर! ! सुनिये विश्वविधाता !

(तर्ज: सखि! जादुगार गिरिधारी... )

हे दीनदयाघन! करुणासागर! ! सुनिये विश्वविधाता ! ! !
जग् चालक पालक दाता! ।।टेक ।।
हम दुर्बलकों सद्बुध्दी दे, तनमन सेवा करने।
मातृभूमिका पाश हटाकर, भारतदेश सुधरने  ।।1।।
बुध्दिवन्त, गुणवन्त रहे हम, शिलसंवर्धक त्यागी।
मानवताके सदा  पुजारी, सन्तनके   सत्संगी   ।।2।।
सत्य-अरहिंसापर मर मिटने, दे निर्भयता मनमें।
तुकड्यादास कहे-यह भक्ती,ना भूलूं क्षणक्षणमें।।3।।