दिल आज मेरा घबराय रहा, हरिगुण गाता नहीं है।

भजन ४२
(तर्ज : पिया मिलन के काज... )

दिल आज मेरा घबराय रहा, हरिगुण गाता नहीं है।
मै बारबार समझाऊँ उसे, तोभी राह वही है ।।टेक।।

सद्गुरु-साँई बर ऐसो दियो, सब घटमें वो सही है।
कौन करे फिर पापपून सब? यह न खबर कहीं है।।१।।

बिगड़ रही अब सुधबुध तनकी, सभी चोर न रही है।
ना जानों कोइ नरककुंड हो, या रण यह मही है।।२।।

दीनदयाला परम नमन मम, सुध लीजे सही है।
कहता तुकड्या ढूंढत है मन, गुरु धन निश्चयी है।।३।।