जोगिया सुनले कहीं अब, बन-बनों क्यों फिर रहा?

भजन ५१
(तर्ज : मानले कहना हमारा... )
जोगिया सुनले कहीं अब, बन-बनों क्यों फिर रहा? ।।टेक।।

दूहि  दिलकी हारले, घटमेंहि मनको मारले ।
विषय पाँचो सारले, क्यों काल-मुखमें शिर रहा ।।१।।

नीच-ऊँच ना जानना, नाता न किसका मानना |
प्रेम -डोरा तानना, फिर विमल जल में तिर रहा ।।२।।

मूँडता क्या बे मिशी को, नट बताता है किसीको ।
सब तेरे रूप है इसी सिध्दान्त में नहिं स्थिर रहा ।।३।।

कहत तुकड्या जानले, मनसे विषय को तानले।
सब तुही तू मानले, फिर आप आपी धिर रहा ।।४।।