हरि - भजनाविण राहविल कैसे ?
(चाल: अब मैं अपने प्रभु...)
हरि - भजनाविण राहविल कैसे ? ॥धृ0॥
दु:सह विरह जसा पति - पत्नी होइ जिवा मम तैसे ॥१॥
जगु न शके पाण्याविण मासा पक्षि पंखुविण जैसे ॥२॥
जैसा चंद्र चकोर न विसरे पुत्र मातु - पितु तैसे ॥३॥
तुकड्यादास म्हणे हरिवाचुनि क्षणहि न मन स्थिर बैसे ॥४॥