तू है शहनशाह दुनिया का । तुमबिन कौन सुनेगा मेरी |

(तर्ज: वेष्णव जन तो तेने कहिये...)
तू है शहनशाह दुनिया का । तुमबिन कौन सुनेगा मेरी |
अर्ज करी हे सेवकने यह। अब पलकी भी हो नहिं देरी ।। टेक ।।
धन नही मागू, बल नही मांगू | नहीं मांगू सत्ता-मगरूरी |
निर्मल ध्यान रहे हिरदेमें | गावनको तेरी बलिहारी ।। १ ।।
जोग न चाहे योग न चाहे । चाहू न जप तप भंग -भंगेरी ।
अटल रहू सेवा करनेको । हरदम तेरे द्वार भिखारी ।।२।।
ना जाऊँ तीरथ मन्दरमें । ना मेला, ना धाम कचेरी ।
गरिबनकी कुटियों में ढूँढू । पीड पराई जाननहारी ।।३।।
ना संसार जचे दिलमें अब । आस रही इतनी कर पूरी ।
तुकड्यादास दास रह जावे । अंत निभे यह मेरी फकीरी ।।४॥।