वा दिनकी कछू याद कर मनमें ,

(तर्ज: राम खेले होली, जमुनातट.....) 

वा दिनकी कछू याद कर मनमें ,
वा दिन की ।।टेक॥
जा दिन रहत पेट माताके,
बाँध रखी गठडी, मुँह मलमें ।।1॥
कित दिन दूध पिया, दिन खोये
घूम फिरा गिर-गिर माटिनमें ।।2 ॥
एक दिन नंग अंग जग घुमे
देखे... खेलत लोग गलनमें ।।3 ॥
तारुण दारुण ख्वाब लोभ के,
विषय-विकार बढ़े जन मनमें।।4 ॥
तुकड्यादास कहे, सब दिन ये,
आखिर पहुँचायेंगे.. कफनमें ।।5।।