अब मै किसबिध भक्ति सुनाऊं ? ॥

(तर्ज: प्रभु मे अवगुण चित्त... )

अब मै किसबिध भक्ति सुनाऊं ? ।। टिक ॥
दुःख दरिद्रसु तडपत है जन; कैसे मन बहलाऊँ ? ।
पेट-पेट कर मन धरि तनकी,आसा कौन दिखाऊँ ।।1।।
अंग - अंग सगरो फटियारो, वर बिना रहवाऊँ ?
क्या वे गाऐं रामकों मनमें ? कैसे    गीत  गवाऊँ  ।।2॥
पैर धरावन जगह न जिनको, किस-किस जगह नचाऊँ ।
हकके द्वार बंद कर बैठे,किसबिध आँख लगाऊँ ?।।3।।
पहिले तो मन चंचल, इनसे केसे स्थीर कराऊँ? ।
कड्यादास कहे स्वारथबिन, परमारथ किम्‌ भावू ?।।4।।