सम्हलो सम्हलो भारतवासी । नैया डूब कीचडमें ।

(तर्ज: तुम्हारे पूजनको भगवान... )

सम्हलो सम्हलो भारतवासी । नैया डूब कीचडमें ।
नाहक लग जाओगे फाँसी ! नैया डूब रही कीचडमें ।।टेक।।
भाग बडे स्वातंत्र्य मिलाया त्याग तपस्यासे अपनाया ।
भोगवृत्तीयाँ बढा-बढाकर, अब आती है उदासी । नैया0।। 1।।
सत्ता-मोह बुरा बतलाते | समझ बूझकर क्यों फँस जाते ।
सेवाभाव छोडकर अपना, क्यों बनते बनवासी ? । नैया 0 ।।2॥
बड़े-बड़े राजे-महाराजे। सत्ता मोह चढे और गाजे।
भूल गये सब राजपाट फिर, हुई जीवनकी हाँसी । नैया0 ।।3।।
चारों ओर अंधेरा छाया । बदल रही जनता की माया ।
अपने मित्र शत्रू बन जाकर, बात बिगाड़े खासी । नेया0 ।।4।।
सुनो -सुनो ध्वनि -शब्द हमारा | मंत्र पढो गांधीका प्यारा ।
तुकड्यादास कहे नीती-बिनु, राजा रहे न दासी । नैया0 ।।5।।