कर रहा निंदा ये किसकी ? सोच कर इस बात का
(तर्ज : मानले कहना हमारा...)
कर रहा निंदा ये किसकी ? सोच कर इस बात का ।।टेक।।
तुझबिना जगिया सुनी है ना, तेरी सबमें धुनी ।
है सभीमें तू मुनी, फिर क्या पराया साथका ? ।।१।।
तूही रोता तूही सोता, तूही भोता खात गोता ।
तूही माता तूही भ्राता, ना जरूरत नातका ।।२।।
मूलसे भटका फिरा, करके नहीं भवमें तिरा ।
गर्वसे नीचे गिरा, क्या काम है तनु-जातका ? ।।३।।
एकसे पैदा हुए, और एकमें जाते बहे ।
एकसे एकी रहे, तुकड्या कहे संग द्वैतका ।।४।।