क्या कसुर है जी ! बतादो क्यों नही मिलते अभी ?

(तर्ज : मानले कहना हमारा...)
क्या कसुर है जी ! बतादो क्यों नही मिलते अभी ? ।।टेक।।
छोड़कर घरबारको, धन - सूत - साथी -नारको ।
ले रहा हूँ सारको, अब ज्यान जाती है नबी ! ।।१।।
रूप तेरा कौन पाया ? शास्त्रनेभी नेति  गाया।
बेदको नहि अंत आया, मायाके बाँधे सभी ।।२।।
ध्रुवने सुख-धन कमाया, कश्यपूने सब गमाया ।
कोलि वाल्मिकिने रमाया, नाम भूलेना कभी ।।३।।
मौत दौडी आगयी, बिरथा सभी काया गयी ।
दास तुकड्याको रही, गुरुके चरणकी आसभी ।।४।।