भागसे पाई है नरतन, क्यों मुसाफिर खो रहा

(तर्ज : मानले कहना हमारा... )
भागसे पाई है नरतन, क्यों मुसाफिर खो रहा ।।टेक।।
काल धरने आगया, जब आपमें  पछता गया।
जूतियाँ तू खागया, नहि है खबर क्या सो रहा ? ।।१।।
छोड विषयों की ये भंगको, धर अभी गुरुराज-संगको ।
फिर उलटकर देख रंगको, द्वैतमें क्यों गो रहा ? ।।२।।
भक्त जगमे थे बडे, नहि तुम चरणपे जा पड़े।
कालके मुखमें खडे, ना मैल सत्‌से    धो    रहा ।।३।।
येहिं साधन तू अभी कर, सद्गुरुके नाम दिल धर |
दुष्ट माया-कामको हर, दास तुकड्या   रो   रहा ।।४।।