दिन चलें बीते सभी, कब दासको पगमें धरोगे ?

(तर्ज : मानले कहना हमारा... )
दिन चलें बीते सभी, कब दासको पगमें धरोगे ? ।।टेक।।
नामकों नहि पा रहा, जब काल आय सता रहा।
गोतिये खाता रहा, फिर कब कुबुध्दी यह हरोंगे? ।।१।।
जन्म फिर फिर पायके, घुमते चले भ्रम मायके । 
लाभ क्या नरकाय के ? फिर कब कहाँ तारण करोगे ? ।।२।।
जन्म विषयोंमें बहा, सब द्वैत बिचमें मच रहा ।
सच नही कूछभी कहा, क्या पाप मेरे ना हरोगे ? ।।३।।
कर कृपा हीनदीन हूँ, सब मैल और बढ़ा रहूँ ।
द्वैतसे लड़ जब जिऊँ, तुकड्या चरणमें ला भरोगे ।।४।।