क्रोध जिसमें है भरा उसे बोधका नहि योग है
(तर्ज : मानले कहना हमारा... )
क्रोध जिसमें है भरा उसे बोधका नहि योग है ।।टेक।।
लीनता हैं पासमें, वहि बोधके अवकाश में ।
क्रोध सबके नाशमें, चुकता उसे नहि भोग है ।।१।।
शांत जो मन धर रहा, भवमें वही नर तर रहा ।
क्रोधवाला मर रहा, उसको तनू के रोग है ।।२।।
प्रेम जिसके पासमें, वहि थिर बसा केलासमें ।
विषयलोभी फाँस में, उसको कहीं भी सोग है ।।३।।
कहत तुकड्या लाभकरण, शांति ही भवपार-तारण ।
लीनता निज जन्म-वारण, प्रेमही संजोग हे ।।४।।