आपको बिसरा दिवाने ! काल -भ्रम धरके भुला है
(तर्ज : मानले कहना हमारा... )
आपको बिसरा दिवाने ! काल -भ्रम धरके भुला है ।।टेक।।
देख घट अजपा तू भाई! खूण सोहं - ओह पाई ।
जीव-शिवको एक लाई, संग त्रिवेणीमें झुला है ।।१।।
चंद्र-सूरज इन स्वरोंसे, चल रही माला भरोसे ।
क्या कहूँ अँधे नरोंसे ? मस्त निजमें वह डुला है ।।२।।
बाज अनहद एक पाया, धुम नगारे धुंद काया ।
कोटि सूरज-तेज छाया, आपमें आपी धुला है ।।३।।
चल रहा जीवन-झरा, शमदम हरा रूपमों भरा ।
कहत तुकड्या जो धरा, हरवक्त रमताही खुला है ।।४।।