है नहीं तुमको कदर भी दासकी स्वामी ! जरा

(तर्ज : मानले कहना हमारा... )
है नहीं तुमको कदर भी दासकी स्वामी ! जरा ।।टेक।।
वक्त जाता है घड़ी-पलका ठरी हुई उम्रमें ।
छोड़कर सारा पसारा, आय   चरणों    में    परा ।।१।।
पतित-पावन नाम सुनके, द्वारपे दाखिल हुआ ।
क्यों भुलाते हो ये बुर्का डालकर,    झगरा   हरा ।।२।।
जगह भक्तोंको दिनी, ऐसी कई बातें सुनी ।
क्या तुम्हें जरुरत नहीं अब? एक क्या न तरा तरा ।।३।।
कहत तुकड्या दीन हूँ, दीननाथके पग लीन हूँ ।
बात सच सबकी कहूँ, अब क्या तकाजाही सरा ?।।४।।