अविनाश भजनबिन साँई । तुझे नही मिलता है भाई !
(तर्ज : सखि पनिया भरन केसे जाना...)
अविनाश भजनबिन साँई । तुझे नही मिलता है भाई !।।टेक।।
सुत-मात-गोत सब प्यारे । इनको आ काल संहारे ।।
निज द्वैत भावसे खाई । तुझे नहीं ।।१।।
कोई खेचर मुद्रा करके । कोई रेचक-कुंभक धरके ।।
इक मायासे भूल पाई । तुझे नही ।।२।।
कोई पंच अगनको धरते । कोई आहार-मैथुन हरते ।।
सब झूठ तमीजी लाई । तुझे नही ।।३।।
कहता तुकड्या गुरु धरले । दे वही कृपा, भव हरले।
नहितो शिर काल खडाही । तुझे नही ।।४।।