कहे रामचंद्र सुन भाई ! बिन निजगुण तारण नाहीं

(तर्ज : सखि पनिया भरन कैसे जाना...)
कहे रामचंद्र सुन भाई ! बिन निजगुण तारण नाहीं ।।टेक।।
नृगराज बड़ा था दाता। नीतिधर्म नित्य चलाता ।।
इक  बात   नजरमें   आई । बिन निज ०।।१।।
उस राजाके गोधनमें । इक विप्र-गऊ गई धीमें ।।
नहि उसे खबर  लग   पाई । बिन निज०।।२।।
अनजानत राजा बोला। सब गौएँ दान दे खोला ।।
यह वार्ता द्विज तक आई । बिन निज० ।।३।।
जब विप्र दुखी हो आया। कहे तुकड्या शाप दिलाया ।।
उसे गिरगिट  योनी   पाई । बिन निज० ।।४।।