कहो कौन तरे भवजलमें ?
(तर्ज : सखि पनिया भरन कैसे जाना... )
कहो कौन तरे भवजलमें ? सब है मनके आधिनमें ।।टेक।।
अजि शास्त्र-पुराणभी लटके। नहि शोध हरीतक फटके ।।
जन खूब रँगे हे धनमें । सब है० ।।१।।
बातन में ढोंग मचाया। गुरुपदका अंत न पाया ।।
दानपून पड़ते रणमें । सब है ० ।।२।।
पंचागन साधन कोटी। नहि हाथ मिले लंगोटी ।।
लोकप्रेम देखत बनमें । सब है ० ।।३।।
कर बोडबाड शिर-केशी । बने हटयोगी, गल फाँसी ।।
कहे तुकड्या बिन गुरु-खुणमें। सब हैं ० ।।४।।