अजि कौन करे यह बानी
(तर्ज : सखि पनिया भरन कैसे जाना... )
अजि कौन करे यह बानी । बिन गुरुके ? समझो ग्यानी ! ।।टेक।।
जिने मार दियो शात्रूको। दे निज झोंका मायाको ।।
करे अभंग अपनी बाणी । बिन गुरुके ० ।।१।।
वह कुम्हार ठाडा गोरा । जो रौंदे अपना छोरा ।।
नहि जानी मोह-निशानी । बिन गुरुके ० ।।२।।
अभिमान त्यजा हरि गाके । वश हुआ मगन दिल जाके ।।
नहि उसबिन आस बिरानी । बिन गुरुके ० ।।३।।
कहता तुकड्या धर ऐसी । धुन, गुरुकी भक्तिहि खासी ।।
क्यों फिरते बन-बन प्राणी ? बिन गुरुके ० ।।४।।