ताब किसका न चलता गढ़ीके उपर

(तर्ज : मेरी सूरत गगन में जाय रही...)
ताब किसका न चलता गढ़ीके उपर
गढीके उपर जान तेरी सफर  ।।टेक।।
चौदह  भुवनपर तेरा ठिकाना
कौन चढे ? सब लटके कबर ।।१।।
जगमग बिजलीमें सब भूल पावे,
मायाका घूँघट है ऊँचा जबर ।।२।।
साँच हिरा कोई बिरला पछानत,
नकली झुकाते है काँच-रबर ।।३।।
संत-समागम कीन्ह जिन्होंने,
कहे तुकड्या वही लेत खबर ।।४।।