कैसी कटके निकटही बैठी रही !
(तर्ज : मेरी सूरत गगन में जाय रही ... )
कैसी कटके निकटही बैठी रही !
ठगनी नारीके संग मत जाओ कोई ।। टेक ।।
सबको झुलाया, कोई न छोडा,
चारोंने जाय दबाय दई ।। १ ।।
ब्रह्मा भुलाया, शंभू झूलाया,
नारदको भी भुलाया सही ।। २ ।।
साधू या संत कछू नहि जानत,
जो उपजे वे समाय गई ।। ३ ।।
कहे तुकड्या प्रेमसे ही निराला,
सदगुरू साँचको आँच नही ।। ४ ।।