सम्हालो प्रभूजी ! सदा दास अपना
(तर्ज : जमालें नबी की है काली ... )
सम्हालो प्रभूजी ! सदा दास अपना ।
कहाँतक उलझना, फिराफिर लपना ? ।।टेक।।
बड़े कष्ट थे भक्त प्रल्हाद - तनको ।
तराया था जलमें, हुआ सार सपना ।।१।।
बलीराज के काज धर रूप आया।
खड़ा है चिरंजीव, पाताल दफना ।।२।।
ध्रुवबालकों ताल तिसराहीं दीन्हा ।
अमर हो खडा है, अधर धाम तपना ।।३।।
असंख्यात पतितों को तारा सुना है।
कहे दास तुकड्या कहाँतक ये जपना ।।४।।