जमींपे रखी लाज, तन-काज भूली

(तर्ज : जमाले नबी की है काली ... )
जमींपे रखी लाज, तन-काज भूली ।
न दुनियाकी पर्वा, बनी नंग- खूली ।।टेक।।
मरद मेरा ऐसा, न दुनिया में कोई ।
जहाँ देखती हूँ, वही     रूप,    डूली ।।१।।
कलामों मे देखा कुरानोंमें घोका।
हो देवल या काबा, सभी जगह धूली ।।२।।
हुआ जोभी आशक उसीके सहारे ।
यही भावना    मेरे    दर्पणमें    फूली ।।३।।
मेरेमेंही मै हूँ यह संतोंका कहना ।
दे कहे दास तुकड्या यही बात छूली ।।४।।