सब छोड मात - तात हरी ! साथ आऊगी

(तर्ज : जमाले नबी की है काली ...)
सब छोड मात-तात हरी ! साथ आऊगी ।
नहि जात-पाँत राखके गुण तेरे गाऊँगी ।।टेक।।
सब भक्त-दर्शनोंसे नहा तुझको ध्याऊँगी ।
हिरदेमें चली जाऊँगी   निजरूप    पाऊँगी ।।१।।
अद्वैत धारके जी ! द्वैत पार ख़ाऊँगी । 
मन-बुध्दि-चित्त नाशकर सहजी समाऊँगी ।।२।।
अनहद की धून सुननेमें निजको रमाऊँगी ।
ब्रम्हीब्रम्ह   एक   होरहा, उसमें  सुखाऊँगी ।।३।।
गुरु आडकुजी ! ध्यान तेरो मस्त लाऊँगी ।
तुकड्याको एक तूही है, पद यह कमाऊँगी ।।४।।