दिलदार यार ! हो हुशार, काहे सो रहा ?

(तर्ज : जमाले नबी की है काली ... )
दिलदार यार ! हो हुशार, काहे सो रहा ? ।
नगरीमें चोर आगये, डाका घुमा रहा ।।टेक।।
दसबीसका मेला हुआ जी ! शोर हो रहा ।
घर-मालको डुबा दिया, अब मैल धो रहा ।।१।।
जिवराज खोगया, पडा करम में रोरहा ।
गुरु न मिले उसे अभी, घुमकेही भो रहा ।।२।।
घर-माल की खजानदार सोते खो रहा ।
नहि पार होयगा, सुधार, हार क्यों  रहा ? ।।३।।
तुकड्या कहे तू कामके खेलोंमे गो रहा ।
भज आडकुजी-नाम को, दौंडी पिटा रहा ।।४।।