इस पेटके फंदेमे पडेसेही सब भुली
(तर्ज : जमाले नबी की है काली ...)
इस पेटके फंदेमे पडेसेही सब भुली ।
क्या करूँ ?कुछ ना उपाव,फिर रही खुली ।।टेक।।
सब तात-मात, गोत- पाँत याहिमें फुली ।
निजरूपको भी छोडके भटक रही भली ।।१।।
कई रोगी -भोगी-जोगी सभी मर रहे गली ।
मृगजलमें फँसके शिरपे मैभी ला रही मूली ।।२।।
अगरचे यह न थी कमी तो मस्त मैं झुली ।
इससेहि सब गमा दिया,कर जोग भी घुली ।।३।।
कहे तुकड्या सभी छोड जो गुरु-नाम ले डुली ।
उसको न फिकर कुछभी, नही तो मिले धुली ।।४।।