दिन जा रहे बीते सभी,कब कामको हरुँ

(तर्ज : जमाले नबी की है काली ... )
दिन जा रहे बीते सभी,कब कामको हरुँ ? ।
घडिपलका भरोसा नही, कैसे उसे धरूँ ? ।।टेक।।
भवपूर जा रहा बडा, उसमें जी! कब तरूँ ?।
मनने बिगाड कर दिया, क्यों काल घर    भरूँ ? ।।१।।
नहि सूझ रहा कछु मुझे, उपाव क्या करूँ ? ।
संतो ! आओ तारलो मुझे, मैं    नामको     स्मरूँ ।।२।।
सुना, ईशको भजतेहि हटे काल दुर्धरू।
बिगडा दिया इस मायाने, अब जाय क्या करूँ ? ।।३।।
तुकड्या कहे यह छोडके नर! भजले सद्गुरु ।
निजनाम   दे   गुरुही,   तभी    पार    जा    तरूँ ।।४।।