इस जगमें आकर भटका, चटका लोभिया रे !
(तर्ज : वारी जाऊ रे सांवरिया.... )
इस जगमें आकर भटका, चटका लोभिया रे ! ।।टेक।।
मायाका सब झूठ पसारा । देखत भूला जग यह सारा।
आखिर में जम-मार अपारा, पावत डूबिया रे ! ।।१।।
बालापनमें खेलत छोटा । तारुण विषयों में नर लोटा ।
बूढ़ा होकर मुद्दल तोटा, राखत चाबियाँ रे ! ।।२।।
आकर मुलस्वरूप भुलाया । जम मारे जब दुखसे रोया।
इस देहीमें सोबत खोया, जीवन शोभिया रे ! ।।३।।
राख समझ कछु दिलके अंदर । पाइ तुझे यह नरतनु सुंदर ।
कहे तुकड्या देहीका मंदिर, लख ले खूबियाँ रे ! ।।४।।