करूँ कैसे स्वामी ? मैं तो निजसुख हारिया रे !
(तर्ज : वारी जाऊ रे सांवरिया.... )
करूँ कैसे स्वामी ? मैं तो निजसुख हारिया रे ! ।।टेक।।
इस लालचमें डूब रहा हूँ । लोभहिसे नीचधार बहा हूँ ।
अंधेसम ना जानूँ कहाँ हूँ, तू दीन - तारिया रे ! ।।१।।
द्वैत न टूटा, भाव न मनका । नाश किया साथीने तनका ।
ध्यान जड़ा दिलमें अब धनका, यह दुखकारिया रे ! ।।२।।
मातपितादिक देखत भूला । विषयनके सुखभासमें झूला ।
ख़ुश भया सुत देखत डूला, मूल बिसारिया रे ! ।।३।।
अब होगी सुमती मुझको कब ? आखिर होगा काल खडा अब
तुकड्याकी मति अपनालो सब, कर भवपारिया रे ! ।।४।।