तेरी कौन बखानत महिमा ?

(तंज : वारी जाऊं रे साबरियां,... )
तेरी कौन बखानत महिमा ? निगम भिन्ना रहा रे ! ।।टेक।।
सुन्न पड़ा वह शेष बिचारा । शास्त्र बजावत डंका हारा।
कौन रहा दुनियामें अपारा, जो गुण गा रहा   रे ? ।।१।।
सबमें सच एक संत कमाया । जो रूप हो उसमेंही रमाया ।
दूजापन धर सार गमाया, वह क्या पा   रहा   रे ? ।।२।।
गुरुके बिन नहि मारग पाया । सद्गुरु वह एकरूप समाया ।
कहता तुकड्या उसीकी छाया, नाम रिझा रहा रे ! ।।३।।