अपनेको आप भूला, हैरान होरहा है

(तर्ज : ईश्वरको जान बंदे...)
अपनेको आप भूला, हैरान होरहा है ।
बिरला कोई बिचारा, दिल-मैल धो रहा है ।।टेक।।
मनराजसेहि ठाडे, पुन-पाप होत गाढ़े ।
वहि नर्क ला पछाड़े, फिर जाय भो रहा है ।।१।।
सब दिन वहीं गमाया, निजरूप ना कमाया ।
विषयोंमे मन रमाया, करकेहि गो रहा   है ।।२।।
वहाँ पून-पाप कीन्हा, उसिनेहि जन्म दिन्हा ।
गुरुगम पल न लिन्हा, ममतामें सो रहा  है ।।३।।
तुकड्या कहे यह मानो, निजरूपको पछानो |
पुन-पाप झूठ जानो, मन लीन जो रहा   है ।।४।।