ठाकुर ! पेट भरा नहीं जाता

(तर्ज : बाबा ! सबसे मीठा बोल...)

ठाकुर ! पेट भरा नहीं जाता ।।टेक ॥
कितना भी करता खटपट मैं,अच्छा-बुरा और लटपट मैं ।
फिर-फिर घाटा ही आता है, करके अर्ज सुनाता।
ठाकुर ! पेट भरा नहीं जाता ।।1।।
इसकी -उसकी निंदा करता, अपनी बाजी आप सुधरता |
हँसते  सारे लोग हमारे, नाहक जूंते खाता।
ठाकर ! पेट भरा नहीं जाता ।। 2 ।।
 हाँजी-हाँजी करके देखा, सेवक बनकर रहा सरीखा ।
उससे भी बदनाम हुआ मैं, राजी नहीं है जनता।
ठाकुर ! पेट भरा नहीं जाता।। 3 ॥
डाकूओंके संग में घूमा, बार-बार बदला पैजामा |
तुकड्यादास कहे बिन तेरे, जीवन नहीं सुधरता।
ठाकुर ! पेट भरा नहीं जाता।। 4 ।।