सुनलें सुजान भाई ! ईश्वर सभी जगा रे !
(तर्ज : ईश्वरकों जान बंदे... )
सुनलें सुजान भाई ! ईश्वर सभी जगा रे ! ।
क्या ब्रम्ह-ब्रह्मी दो है? सब द्वैत वह भगा रे ! ।।टेक।।
कहीं टूट जाये छाया? वैसी हरीकी माया ।
नहि जात वह छुपाया, हैं तत्व एक सारे ।।१।।
तब अज्ञ जीव भाई ! नहिं होत शुध्द मायी ।
जब द्वैत-मैल खाई, निजनामसे तगा रे ! ।।२।।
सुन जीव-शिव नाता, जब एक होहि जाता ।
तब टूट जाय बाता, सब नाश हो ढगा रे ! ।।३।।
जब चाँद का उजारा, तब अंधकार हारा ।
मद-काम -क्रोध सारा, दूर भागते खगा रे ! ।।४।।
तुकड्या कहे सुनोजी ! मनमौजी आडकोजी ।
उनकी निगा राजी, भवसिंधुही ठगा रे ! ।।५।।