छटकेसे दे दे फटका

(तर्ज : गुजरान करो गरिबी में बाबा... )
छटकेसे दे दे फटका । अब तोडो मनका खटका बे ! ।।टेक।।
क्या कहना इस मनकी तारीफ, भोगी -जटाऊ पटका ।
चंदा - सूरज ऋषी - देव सब, बडों बडोंको मटका  बे ।।१।।
ना समझे कोई मुर्शद - मौला, पीरपैगंबर लटका ।
गले सभीके डालत फाँसा, आप अलग हो सटका  बे ।।२।।
देख नजूमी - मौला - काजी खैच रहा, नहि हटका ।
सभी खलक को चपत लगाना, इसी बातमें चटका बे ।।३।।
कहता तुकड्या जान पियारे ! गुरूचरण जा अटका |
ब्रम्हस्वरूप हो ज़िसकी दृष्टी, वही ब्रह्ममें छिटका   बे ।।४।।