तेरी क्या कहूँ सूरत यार !
(तर्ज : तू तो उड़ता पंछी यार ...)
तेरी क्या कहूँ सूरत यार ! तू तो सब टुनियाके पार ।।टेक।।
सप्तचक्रके लाल गुँथाकर तनमें डारा हार ।
एक एकसे फूल ऊँचेरा, गुँफने माया - नार ।।१।।
ओहं-सोहं पंखा ऊपर चले रैन-दिन धार ।
इडा-पिंगला अमृत सींचे, खूब चली बलिहार ।।२।।
पंच तऱ्हा और पाँच तारका,बजे नाद दश-तार ।
सूर्यचंद्रबिन गिरे उजारा, रोशनी है झकदार ।।३।।
कहता तुकड्या रंग-रंगका निकट मुकुट सिरबार ।
वही पछाना करले भाई ! तनसे हो जा न्यार ।।४।।