कब भवपार जाऊँगा ?
(तर्ज : अब मै ब्रह्म पागया... )
कब भवपार जाऊँगा ? ।।टेक।।
दुनिया में आयके जी ! सभी उमर गमाया ।
नहि संतसंग साध लिया, विषय भ्रमाया ।।
कब निजरूप पाऊँगा ? ।।१।।
दुनियाकी मौज देखके खुशियाँ मना रहा ।
सब मात-तात-गोत देख धन रखा वहाँ ।।
कब मै प्रेम लाऊँगा ? ।।२।।
भक्ति ना हुई किसी की जन्मभरे में ।
दुष्ट काम हाथ लिये जाय घारोंमे ।।
कब यह पाप धोऊँगा ?।।३।।
कहत दास तुकड्या ये पल अमोल है ।
बिन गुरुकी किरपासे जन्म फोल है ।।
पग में शिर नमाऊँगा ।।४।।