सुन देख जरा हिरेदे बिचमें
(तर्ज : हरिचरण बिना सुख नाही रे... )
सुन देख जरा हिरेदे बिचमें ।।टेक।।
जीवनकला एक धार चली है ।
संग त्रिवेणी बहत भली है ।।
रहत निरंजनके ऊँचमें ।। सुन० ।।१।।
लक्ष्य अलक्ष्य भ्रुकुटिमेंही धर ।
ध्यान जरा पलके पलमें कर ।।
रोध विषयगुणको सचमें ।। सुन ० ।।२।।
चांदसुरज तारे या दीप बिन ।
रंगरूपबिन भंगधूपबिन ।।
जगमग ज्योत जले गचमे ।। सुन० ।।३।।
घाँट-घड्यालकी धूम मची है ।
शंख - मृदंग अभंग रुची है ।।
कहे तुकड्या डुलता उसमें ।।सुन ० ।।४।।