कहाँ ईश्वर न मालुम बे ! परखता देव फिरता है

( तर्ज : अगर है शौक मिलनेका...)
कहाँ ईश्वर न मालुम बे ! परखता देव फिरता है ।
करो एकाग्रता मनमें, जभी भवपार तिरता है ।।टेक।।
हजारो शास्रको बाचा, भजन में टाल ले नाचा ।
नहीं है मन अगर साचा, तो कैसे पाय  धिरता  है ? ।।१।।
पडा घूँघट वो मायाका, न मालुम कौन पैयाका ।
काल जब आय गड झाँका, पकड लेके गुजरता है ।।२।।
धरो अब संतके पगको, हटाओ मैलके ढगको ।
पछानो संतके सँगको, जभी वह तनमें मिलता   है ।।३।।
कहे तुकड्या चलो तरके, गुरुको साथ ले करके।
वही जो देहमें  भरके,   पिलावे    प्रेम   झरता   है ।।४।।