दिवाने ! भूल क्यों पावे? रहा जगमे न है कोई

( तर्ज : अगर है शौक मिलनेका... )
दिवाने ! भूल क्यों पावे? रहा जगमे न है कोई ।।टेक।।
बडे थे भक्त दुनियामें, कोई है ना यहाँ थामे ।
उमर क्यों खोत गमजा में ? पकड़ शिर अंतमें रोई ।।१।।
किसीकी है नहीं मूरत, दबाई मट्टीमें सूरत ।
रहे सुन संतकी कीरत,   भरे    जो    नैनमें    साँई ।।२।। 
करो ऐसी कमाई है, सुरत निजमें रमाई है।
मती सतमें समाई है, वही  नर   मस्त   डुल    होई ।।३।।
अगर भ्रमकोहि धरना है, समझ फिर-फिरसे मरना है ।
कहे तुकड्या न तरना है, अमरसुख भूलसे    खोई ।।४।।