स्वरूपको देखले अपने, सहजमें वह समाया है
( तर्ज : अगर है शौक मिलनेका... )
स्वरूपको देखले अपने, सहजमें वह समाया है ।।टेक।।
भटकते क्यों ? सुनो भाई ! नही तनमें सुधी पाई ।
गुरूबिन कौन दिलवाई ? खुदीमें वह रमाया है ।।१।।
सभी जप-जापमें देखा, धर्म और कर्ममें धोका ।
बिना गुरुकी मिले नौका, ये भवने सब गमाया है ।।२।।
भरा है राम निज-घटमें, वहाँ क्या देखता मठमें ?
पलकभर देख भ्रूकुटमें, सुफल तू फिर कमाया है ।।३।।
कहे तुकड्या सुनो भाई ! सुसाधन सद्गुरुमाई ।
उसीके बिन सुधी खोई, उसीने जग नमाया है ।।४।।