कृपा कर नाथ ! अब मुझपे, फँसा भवधारमें

( तर्ज : अगर है शौक मिलनेका...)
कृपा कर नाथ ! अब मुझपे, फँसा भवधारमें आकर ।।टेक।।
बडी जंजाल है माया, पडी इसमें यही काया ।
न गुण तेरा कभी पाया, करू क्या अंतमें जाकर ? ।।१।।
खडे शिरपर तमासेगिर, नहीं सुनते न रखते धीर ।
हमेशा चल रही फिरफीर, मरूँ क्या आज कुछ खाकर ? ।।२।।
दिवाना हो रहा इनमें, न मन ठहरे निशिदिन में ।
पडे फिर मार शिर छिनमें, किया क्या नरतनू पाकर ।।३।।
कहे तुकड्या सुनो स्वामी ! तुम्ही हो सबके निजधामी ।
पडा कीचडमें बेफामी,  उठाओ   दास   कर   देकर ।।४।।