अगर तू जग - वशी चाहता, सम्हालो इंद्रिया सारे

( तर्ज : अगर है शौक मिलनेका... )
अगर तू जग - वशी चाहता, सम्हालो इंद्रिया सारे ।।टेक।।
कनक और कान्तसे डरना, कभी झूठा नही करना ।
गुरुका नाम दिल धरना, जभी जन हो वशी प्यारे ! ।।१।।
किसीसे मत रखो नाता, वही मालिक भजो दाता ।
जभी सब हाथमें आता, वही करने हरी   ध्या   रे ! ।।२।।
किसीपर प्रेम मत करले, सभी ईश्वर भरा स्मरले ।
यहींसे जाय भव तरले, मस्त   तनकी   सुधी   हारे ।।३।।
कहे तुकड्या हरी होवे, तहाँ जम-मार ना भोवे ।
जनम और मरणको धोवे, सभी जगको तूहिं तारे ।।४।।