सुना मैने स्वरूप तेरा, अलख अविनाश तनमाँही

( तर्ज : अगर है शौक मिलनेका... )
सुना मैने स्वरूप तेरा, अलख अविनाश तनमाँही ।
ढूँढे शाहीर पैगम्बर, पता तेरा मिला नाही ।।टेक।।
किसीके शिर जटा भारी, बनोंमे जा उमर हारी ।
लंगोटी कमरकी डारी, नहीं  अकबत   उसे   पाई ।।१।।
कोई शिर टांगके लटके, कोई धुर खींचने चटके ।
सभी मायामें जा अटके, भरम दिलका न खुटवाई ।।२।।
कोई बिरला पता पाया, अटल उसमें समा छाया ।
किसीने खोहिं दी काया, कुफर   भवधार  हटवाई ।।३।।
कहे तुकड्या कहाँ जाना? पता तेरा यहीं पाना ।
जहाँ खुदको न पहिचाना, झूठ साधन  सभी  साँई ।।४।।