चुराकर ले चले दिलको, भुलाये ग्वाल औ नारी

( तर्ज : अगर है शौक मिलनेका... )
चुराकर ले चले दिलको, भुलाये ग्वाल औ नारी ।।टेक।।
बिकट बन्सी सुनायी है, वहीं सब खींच लायी है।
धुंद ग्वालनपे छायी है, वहीं मेरी   सुधी   हारी ।।१।।
लगे सब ग्वाल उस छंदा, उन्हे कुछ ना सुझे धंदा ।
जिगरमें भर लिया नंदा, मौज है रैनदिन   सारी ।।२।।
सभीपे डारके माया, स्वरूप उनको दिखलाया ।
वही अर्जुन पता पाया, जनम और मरणसे तारी ।।३।।
निजी भक्तीबिना साँई, कभी पाता नहीं भाई |
कहे तुकड्या सुधी लायी, दास होकर कुफर मारी ।।४।।